भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सुभाष चंद्र बोस की भूमिका (Role of Subhash Chandra Bose in India's Freedom Struggle)

सबसे महत्वपूर्ण स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे सुभाष चंद्र बोस, जिन्हें नेताजी के नाम से जाना जाता है, । वह उत्कृष्ट नेतृत्व क्षमता के साथ उत्कृष्ट वक्ता भी थे। उन्हें भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भागीदारी के लिये जाना जाता है।

वह सी.आर. दास के साथ राजनीतिक गतिविधियों में संलग्न थे और उनके साथ जेल भी गए। जब सीआर. दास को कलकत्ता को-ऑपरेशन का मेयर चुना गया तो उन्होंने बोस को मुख्य कार्यकारी नामित किया था। सुभाष चंद्र बोस को वर्ष 1924 में उनकी राजनीतिक गतिविधियों के लिये गिरफ्तार किया गया था।

सुभाष चंद्र बोस युवाओं को संगठित किया और ट्रेड यूनियन आंदोलन को बढ़ावा दिया। वर्ष 1930 में उन्हें कलकत्ता का मेयर चुना गया, उसी वर्ष उन्हें अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कॉन्ग्रेस का अध्यक्ष भी चुना गया।

सुभाष चंद्र बोस बिना शर्त स्वराज का समर्थन किया और मोतीलाल नेहरू रिपोर्ट का विरोध किया जिसमें भारत के लिये डोमिनियन के दर्जे की बात कही गई थी। वर्ष 1930 के दशक में वह जवाहरलाल नेहरू और एम.एन. रॉय के साथ कॉन्ग्रेस की वामपंथी राजनीति में संलग्न रहे।

सुभाष चंद्र बोस वर्ष 1930 के नमक सत्याग्रह में सक्रिय रूप से भाग लिया और वर्ष 1931 में सविनय अवज्ञा आंदोलन के निलंबन तथा गांधी-इरविन समझौते पर हस्ताक्षर करने का विरोध किया।

वामपंथी समूह के प्रयासों के कारण कॉन्ग्रेस ने वर्ष 1931 में कराची में दूरगामी प्रस्ताव पारित किये, जिसमें कॉन्ग्रेस के प्रमुख लक्ष्य के रुप में मौलिक अधिकारों की गारंटी देने के अलावा उत्पादन के साधनों के समाजीकरण पर बल दिया गया।

सुभाष चंद्र ने वर्ष 1938 में हरिपुरा में कॉन्ग्रेस की अध्यक्षता की, अगले ही वर्ष उन्होंने त्रिपुरी में गांधी जी के उम्मीदवार पट्टाभि सीतारमैय्या के खिलाफ फिर से अध्यक्ष पद का चुनाव जीता।

लेकिन गांधी जी के साथ वैचारिक मतभेद के कारण बोस ने कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे दिया और 'फॉरवर्ड ब्लॉक' नामक नए दल की स्थापना की।

इसका उद्देश्य उनके गृह राज्य बंगाल में वामपंथी राजनीति के प्रमुख समर्थन आधार को समेकित करना था।

जब द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हुआ तो उन्हें फिर से सविनय अवज्ञा में भाग लेने के कारण कैद कर लिया गया और कोलकाता में नज़रबंद कर दिया गया।

सुभाष चंद्र ने बर्लिन में फ्री इंडिया सेंटर की स्थापना की और युद्ध के लिये भारतीय कैदियों को मिलाकर भारतीय सेना का गठन किया, जिन्होंने जर्मनी, इटली और जापान द्वारा बंदी बनाए जाने से पहले उत्तरी अफ्रीका में अंग्रेज़ों के लिये युद्ध लड़ा था।

यूरोप सुभाष चंद्र बोस ने भारत की आज़ादी के लिये हिटलर और मुसोलिनी से मदद मांगी।

सुभाष चंद्र बोस जुलाई 1943 में जर्मनी से जापान-नियंत्रित सिंगापुर पहुँचे वहाँ से उन्होंने अपना प्रसिद्ध नारा ‘दिल्ली चलो’ दिया और 21 अक्तूबर, 1943 को आज़ाद हिंद सरकार तथा भारतीय राष्ट्रीय सेना के गठन की घोषणा की।

आज़ाद हिंद रेडियो का आरंभ नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के नेतृत्त्व में जर्मनी में किया गया था। इस रेडियो का उद्देश्य भारतीयों को अंग्रेज़ों से स्वतंत्रता प्राप्त करने हेतु संघर्ष करने के लिये प्रेरित करना था। इस रेडियो पर बोस ने 6 जुलाई, 1944 को महात्मा गांधी को 'राष्ट्रपिता' के रूप में संबोधित किया।

INA का गठन पहली बार मोहन सिंह और जापानी मेजर इविची फुजिवारा के नेतृत्त्व में किया गया था तथा इसमें मलायन ( मलेशिया) अभियान में सिंगापुर में ब्रिटिश-भारतीय सेना की तरफ से युद्ध में शामिल, जापान द्वारा बंदी बनाए गए भारतीय कैदियों को शामिल किया गया था।

सुभाष चंद्र बोस जुलाई 1943 में जर्मनी से जापान-नियंत्रित सिंगापुर पहुँचे वहाँ से उन्होंने अपना प्रसिद्ध नारा ‘दिल्ली चलो’ दिया और 21 अक्तूबर, 1943 को आज़ाद हिंद सरकार तथा भारतीय राष्ट्रीय सेना के गठन की घोषणा की।

सुभाष चंद्र बोस जुलाई 1943 में जर्मनी से जापान-नियंत्रित सिंगापुर पहुँचे वहाँ से उन्होंने अपना प्रसिद्ध नारा ‘दिल्ली चलो’ दिया और 21 अक्तूबर, 1943 को आज़ाद हिंद सरकार तथा भारतीय राष्ट्रीय सेना के गठन की घोषणा की।

सुभाष चंद्र बोस का स्वतंत्रता संग्राम न केवल भारत के लिये बल्कि तीसरे विश्व के सभी देशों के लिये प्रेरणा का स्रोत सिद्ध हुआ। बोस के नेतृत्व वाले भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का इन सभी देशों पर व्यापक प्रभाव पड़ा। नेताजी का योगदान उन्हें विश्व स्तर पर "स्वतंत्रता के नायक" के रूप में स्थापित करता है।