10 Rs NOTE OF SUBHASH CHAND BOSE PHOTO

आजादी की लड़ाई - नेताजी सुभाषचंद्र बोस

नेताजी सुभाषचंद्र बोस अपनी सेना आजाद हिंद फौज के साथ।

नेताजी सुभाषचंद्र बोस अपनी सेना आजाद हिंद फौज के साथ।
आजादी की लड़ाई के दौरान नेताजी सुभाषचंद्र बोस।

आजादी की लड़ाई के दौरान नेताजी सुभाषचंद्र बोस।
आजादी की लड़ाई के दौरान नेताजी सुभाषचंद्र बोस महात्मा गांधी के साथ।

आजादी की लड़ाई के दौरान नेताजी सुभाषचंद्र बोस महात्मा गांधी के साथ।

स्वतंत्रता आंदोलन के पहले शहीद खुदीराम बोस के बारे में जानिए

खुदीराम बोस की दुर्लभ तस्वीर।
नई दिल्ली।। भारतीय स्वाधीनता संग्राम की क्रांतिकारी धारा में त्याग और बलिदान जज्बा पैदा करने और देश में आजादी के लिए जान न्योछावर करने का साहस भरने वाले प्रथम सेनानी खुदीराम बोस माने जाते हैं। उनकी शाहदत ने हिंदुस्तानियों में आजादी की जो ललक पैदा की उससे स्वाधीनता आंदोलन को नया बल मिला। आज ही के दिन यानी 11 अगस्त को खुदीराम बोस सिर्फ 18 साल की उम्र में देश के लिए फांसी के फंदे पर झूल गए थे।

बंगाल में मिदनापुर जिले के हबीबपुर गांव में त्रैलोक्य नाथ बोस के यहां 3 दिसंबर 1889 को जन्म लेने वाले खुदीराम बोस जब बहुत छोटे थे तभी उनके माता-पिता का निधन हो गया था। उनकी बड़ी बहन ने उनका लालन-पालन किया था।

बंगाल विभाजन (1905 ) के बाद खुदीराम बोस स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े थे। सत्येन बोस के नेतृत्व में खुदीराम बोस ने अपना क्रांतिकारी जीवन शुरू किया था।


खुदीराम बोस राजनीतिक गतिविधियों में स्कूल के दिनों से ही भाग लेने लगे थे। वे जलसे जलूसों में शामिल होते थे तथा अंग्रेजी साम्राज्यवाद के खिलाफ नारे लगाते थे। उन्होंने नौवीं कक्षा के बाद ही पढ़ाई छोड़ दी और सिर पर कफन बांधकर जंग-ए-आजादी में कूद पड़े। वह रेवॉल्यूशनरी पार्टी के सदस्य बने और वंदेमातरम के पर्चे वितरित करने में अहम भूमिका निभाई।

पुलिस ने 28 फरवरी, सन 1906 को सोनार बंगला नामक एक इश्तहार बांटते हुए बोस को दबोच लिया। लेकिन बोस पुलिस के शिकंजे से भागने में सफल रहे। 16 मई, सन 1906 को एक बार फिर पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया, लेकिन उनकी आयु कम होने के कारण उन्हें चेतावनी देकर छोड़ दिया गया था। 6 दिसंबर, 1907 को बंगाल के नारायणगढ़ रेलवे स्टेशन पर किए गए बम विस्फोट की घटना में भी बोस भी शामिल थे।

कलकत्ता (अब कोलकाता) में किंग्सफर्ड चीफ प्रेजिडेंसी मैजिस्ट्रेट बहुत सख्त और क्रूर अधिकारी था। वह अधिकारी देश भक्तों, विशेषकर क्रांतिकारियों को बहुत तंग करता था। उन पर वह कई तरह के अत्याचार करता। क्रांतिकारियों ने उसे मार डालने की ठान ली थी। युगांतर क्रांतिकारी दल के नेता वीरेंद्र कुमार घोष ने घोषणा की कि किंग्सफोर्ड को मुजफ्फरपुर (बिहार) में ही मारा जाएगा। इस काम के लिए खुदीराम बोस तथा प्रपुल्ल चाकी को चुना गया।

ये दोनों क्रांतिकारी बहुत सूझबूझ वाले थे। इनकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। देश भक्तों को तंग करने वालों को मार डालने का काम उन्हें सौंपा गया था। एक दिन वे दोनों मुजफ्फरपुर पहुंच गए। वहीं एक धर्मशाला में वे आठ दिन रहे। इस दौरान उन्होंने किंग्सफर्ड की दिनचर्या तथा गतिविधियों पर पूरी नजर रखी। उनके बंगले के पास ही क्लब था। अंग्रेजी अधिकारी और उनके परिवार के लोग शाम को वहां जाते थे।

30 अप्रैल, 1908 की शाम किंग्सफर्ड और उसकी पत्नी क्लब में पहुंचे। रात के साढे़ आठ बजे मिसेज कैनेडी और उसकी बेटी अपनी बग्घी में बैठकर क्लब से घर की तरफ आ रहे थे। उनकी बग्घी का रंग लाल था और वह बिल्कुल किंग्सफर्ड की बग्घी से मिलती-जुलती थी। खुदीराम बोस तथा उसके साथी ने किंग्सफर्ड की बग्घी समझकर उस पर बम फेंक दिया जिससे उसमें सवार मां-बेटी की मौत हो गई। क्रांतिकारी इस विश्वास से भाग निकले कि किंग्सफर्ड को मारने में वे सफल हो गए हैं।

खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चंद 25 मील तक भागने के बाद एक रेलवे स्टेशन पर पहुंचे। खुदीराम बोस पर पुलिस को संदेह हो गया और पूसा रोड रेलवे स्टेशन (अब यह स्टेशन खुदीराम बोस के नाम पर) पर उन्हें घेर लिया। अपने को घिरा देख प्रफुल्ल चंद ने खुद को गोली मारकर शहादत दे दी पर खुदीराम पकड़े गए। उनके मन में तनिक भी भय नहीं था।

खुदीराम बोस को जेल में डाल दिया गया और उन पर हत्या का मुकदमा चला। अपने बयान में स्वीकार किया कि उन्होंने तो किंग्सफर्ड को मारने का प्रयास किया था। लेकिन, इस बात पर बहुत अफसोस है कि निर्दोष कैनेडी तथा उनकी बेटी गलती से मारे गए।

मुकदमा केवल पांच दिन चला। 8 जून, 1908 को उन्हें अदालत में पेश किया गया और 13 जून को उन्हें मृत्य दंड की सजा सुनाई गई। 11 अगस्त, 1908 को इस वीर क्रांतिकारी को फांसी पर चढ़ा दिया गया। उन्होंने अपना जीवन देश की आजादी के लिए न्यौछावर कर दिया

मुजफ्फरपुर जेल में जिस मैजिस्ट्रेट ने उन्हें फांसी पर लटकाने का आदेश सुनाया था, उसने बाद में बताया कि खुदीराम बोस एक शेर के बच्चे की तरह निडर होकर फांसी के तख्ते की ओर बढ़े थे। शहादत के बाद खुदीराम इतने लोकप्रिय हो गए कि बंगाल के जुलाहे उनके नाम की एक खास किस्म की धोती बुनने लगे। खुदीराम बोस को भारत की स्वतंत्रता के लिए संगठित क्रांतिकारी आंदोलन का प्रथम शहीद माना जाता है।
SOURCE - NAVBHARAT TIMES

Chandrasekhar Azad, - The Kakori Rail Dacoity

The Kakori Rail Dacoity



It was December 19, 1927. The winter sun rose late. But its golden rays brought warmth and joy to people shivering in the biting cold.

At the same time, in the District Jail at Faizabad, Uttar Pradesh, officials were getting ready to put an end to the life of a man. He was a revolutionary. Officials, both high and low, were busy. The Chief Jailer carefully inspected the rope, the sandbags and other things necessary for his execution . He was fully satisfied with the arrangements. Then he called out to his subordinate, "Bring the convict here". The official went with ten soldiers. The door of the cell of the man who was to die opened with a loud, harsh sound. That was the last time the door opened for this man.The brave patriot was waiting for this call. He asked cheerfully, "Is everything ready?"

The Lion Among Men

The hero in chains walked upright and with resolve between soldiers who led him to the hangman’s post. Those who were there forgot their positions and

Bhagat Singh's Original Photographs

At the age of 21+ years 1929

At the age of 20 years


Chandrasekhar Azad



Chandrasekhar Azad was born on July 23,1906 in Badarka(Unnao).Earlier he was Chandrasekhar Tiwari,but after a court incident he became famous as Azad.Chandrasekhar Azad's parents were Pandit Sita Ram Tiwari and Jagrani Devi. He received his early schooling in Bhavra District Jhabua (Madhya Pradesh). For higher studies he went to the Sanskrit Pathashala at Varanasi. He was an ardent follower of Hanuman and disguised himself as a priest in a hanuman temple to escape the dragnet of British in pre-independence India. 
Young Azad was one of the young generation of Indians when Mahatma Gandhi launched the Non-Cooperation Movement. But many were disillusioned with the suspension of the struggle in 1922 owing to the Chauri Chaura massacre of 22 policemen. Although Gandhi was appalled by the brutal violence, Azad did not feel that violence was unacceptable in the struggle, especially in view of the Amritsar Massacre of 1919, where Army units killed hundreds of unarmed civilians and wounded thousands in Amritsar. Young Azad and contemporaries like Bhagat Singh were deeply and emotionally influenced by that tragedy.

As a revolutionary, he adopted the lastname Azad, which means "Free" in Urdu.There is an interesting story that while he adopted the name "Azad" he made a pledge that the Police will never capture him alive. Azad and others had committed themselves to absolute independence by any means. He was most famous for The Kakori Rail Dacoity in 1925 and the assassination of the assistant superintendent of Police John Poyantz Saunders in 1928. Azad and his compatriots would target British officials known for their oppressive actions against ordinary people, or for beating and torturing arrested freedom fighters.